रात्रि भर की चौकीदारी की थकावट, एक मिनट चैन नहीं। ऐसे में भोर की ठन्डी हवा में कुनबे के साथ कुछ सुकून के कुछ क्षण कितने दुर्लभ होते हैं। फिर इतना ऊँचा, साफ-सुथरा और आराम दायक बिस्तर हो तो गहरी नींद आ ही जाती है। क्या मनुष्य भी सीमित संसाधनो को इसी तरह बाँट सकता है। बस अपनी ज़रूरत भर। ये जीव आपस में लड़ने के लिये बदनाम हैं या आदमियों द्वारा बदनाम किये गये हैं जिससे वो अपनी कमियों पर पर्दा डाल सके या स्वयं को इनसे ऊँचा साबित कर सके?
ये अपनी निद्रा में इतने निमग्न हैं कि किसी के आने जाने या चित्र खींचने से इन्हें कोई व्यवधान नहीं। चाहे तो आप वीडियो ही क्यों न बना लें।
ठेलों की इस अपारम्परिक उपयोगिता ने मुझे सुखद विस्मय प्रदान किया इसलिये मन हुआ कि आपसे भी बाँटू और देखूँ कि यह चित्र आपको क्या संदेश देता है। (इस ठेले पर दिन में दाने भूने जायेंगे, मनुष्यों के उपयोग के लिये)
-- अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’